
नवग्रह मंत्र
नवग्रह मंत्र
नवग्रह मंत्र
ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते चंद्रप्रभु तीर्थंकराय विजय यक्ष |
भारतीय संस्कृति में नवग्रह उपासना का उतना ही महत्व है जितना किसी देवी-देवता की उपासना का होता है। नवग्रहों की उपासना के लिये पूजासाधना हमारे शास्त्रों में जप, तप, व्रत व दान इन चार प्रकार के माध्यमों से दी गई है। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा विश्वासपूर्वक ये उपासना सम्पन्न करता है तो साधक को अभिष्ट की प्राप्ति होती है।
भारतीय संस्कृति में नवग्रह उपासना का उतना ही महत्व है जितना किसी देवी-देवता की उपासना का होता है। नवग्रहों की उपासना के लिये पूजासाधना हमारे शास्त्रों में जप, तप, व्रत व दान इन चार प्रकार के माध्यमों से दी गई है। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा विश्वासपूर्वक ये उपासना सम्पन्न करता है तो साधक को अभिष्ट की प्राप्ति होती है।
हमारे धर्म ग्रंथों में कई मंत्रों का वर्णन है जिनके जप से किसी भी ग्रह की शांति हो जाती है। एक मंत्र ऐसा भी है जिसके माध्यम से सभी ग्रहों की एक साथ पूजा की जा सकती है। यह मंत्र नौ ग्रहों की पूजा के लिए उपयुक्त है। यदि इस मंत्र का प्रतिदिन जप किया जाए तो सभी ग्रहों का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
मंत्र
ऊँ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: राशि भूमि सुतो बुध च।
गुरू च शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु।।
जप विधि
- सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर नवग्रहों की पूजा करें।
- नवग्रह की मूर्ति के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का पांच माला जप करें।
- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही शुभ फल देने लगता है।
नवग्रह जप
नवग्रहों के जप विधान के अंतर्गत प्रत्येक ग्रह के अपने अलग-अलग विभिन्न मंत्र होते हैं। इन विभिन्न मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जाप प्रत्येग ग्रह की निश्चित जपसंख्या के आधार पर करना चाहिए। यह जाप 108 दाने की रूद्राक्ष माला द्वारा सम्पन्न होता है। प्रतिदिन नियत संख्या में माला करना चाहिए। जप पूर्ण होने पर जप का दशंाश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन एंव मार्जन का दशांश ब्राम्हण भोजन का विधान है। वैसे तो शास्त्रों में कहा गया है कि ''कलियुग चर्तुभुजों'' अर्थात् कलियुग में निश्चित जपसंख्या के चार गुना जप करना चाहिए। नवग्रहों के विभिन्न मंत्र इस प्रकार है:-
मूर्ति का स्वरूप: नवग्रह शांति के लिए सबसे आवश्यक है उस ग्रह की प्रतिमा का होना। भविष्यपुराण के अनुसार ग्रहों के स्वरूप के अनुसार प्रतिमा बनवाकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

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