
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
नवग्रह मंत्र
दुर्गा पूजा शक्ति उपासना का पर्व है। नवरात्र में मनाने का कारण यह है कि इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जागृत होकर नवों ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। दुर्गा की इन नवों शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है।
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
अगर आप प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता चाहते हैं, विशेष रुप से छात्रों को मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिये। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है। नौकरी और साक्षात्कार में सफलता दिलाती हैं मां ब्रह्मचारिणी क्योंकि ये तपस्वी वेष में हैं।
ब्रह्मचारिणी का परीक्षा में सफलता दिलाने का मंत्र
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।।
मां ब्रह्मचारिणी को मौसमी फल का भोग लगायें
मंत्र : ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
ब्रह्मचारिणी:- मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप
नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है | ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ:- ब्रह्म अर्थात तपस्या और तप और चारिणी अर्थात आचरण करने वाली | इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है |
महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने घोर तपस्या की थी | उन्होंने घर को त्यागकर निर्जन वन में विना आहार का सेवन किये तप किया था, इस कठिन तपस्या के कारण माता को तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी आदि नामों से संबोधित किया जाता है |
इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं |मां ब्रह्मचारिणी का पूजन पूर्ण श्रृद्धा से करने पर माता की कृपा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है | तथा संकट और आपदों का विनाश होता है |
दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है| माता के इस स्वरूप के पूजन का निष्कर्ष यह है कि जिस प्रकार माता ने वर्षों तक कठिन तप किया और इसके फलस्वरूप भी वें विचलित नहीं हुयी, इसी प्रकार जीवन के कठिन क्षणों में भी मन को विचलित न होने दें |
स्तुति मंत्र :-
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू |
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
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