
सप्तमम् कालरात्रि
नवग्रह मंत्र
दुर्गा पूजा शक्ति उपासना का पर्व है। नवरात्र में मनाने का कारण यह है कि इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जागृत होकर नवों ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। दुर्गा की इन नवों शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है।
सप्तमम् कालरात्रि
दुश्मनों से जब आप घिर जायें, हर ओर विरोधी नज़र आयें, तो ऐसे में आपको माता कालरात्रि की पूजा करनी चाहिये। ऐसा करने से हर तरह की शत्रुबाधा से मुक्ति मिलेगी।
मां कालरात्रि का शत्रुबाधा मुक्ति मंत्र
त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं समरमुर्धनि तेSपि हत्वा।
नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त मस्माकमुन्मद सुरारिभवम् नमस्ते।।
मां कालरात्रि को शहद का भोग लगायें।
मंत्र : कालरात्रि
कालरात्रि एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना
खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
माता कालरात्री:- माँ दुर्गा का सातवां स्वरूप
माँ दुर्गा का सप्तम स्वरूप कालरात्री है | नवरात्रि में सातवे दिन इसी स्वरूप की पूजा की जाती है | इसे भद्रकाली या महाकाली भी कहा जाता है |
कालरात्री यथा नाम तथा गुण, अर्थात माता कालरात्री की आराधना करने से भूत-प्रेत, ग्रह बाधाओं और आसुरी शक्तियों का नाश होता है | और इनका नाश करने के लिए माता कालरात्रि रूप में काल बनकर आती है | भयंकर रूप होने के बावजूद माँ सदैव शुभ फल दात्री है, इसीलिए इन्हें शुभंकरी भी कहते है | माता कालरात्री से भक्तों को भयभीत नहीं होना चाहिए अपितु उनकी आराधना कर अपने आप को कृतार्थ करना चाहिए |
स्वरूप :- माँ कालरात्री का शरीर घने अंधकार की तरह एकदम काला है | माता के तीन नेत्र है और काल के जैसा भयानक स्वरूप है | सिर के बाल बिखरे हुए है, गले में खोपड़ियों और कंकालों की माला है | हाथ में त्रिशूल और खड्ग लिए हुए माता का स्वरूप अत्यंत भयावह और डरावना है |
स्तुति मंत्र :-
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्री रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी ||
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